प्रेम मंदिर की यात्रा – एक 12 साल के बच्चे की नजर से(जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज)

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  ठंडी की छुट्टियाँ शुरू होते ही मैं बहुत खुश था। अब पूरे दो हफ़्तों के लिए ना स्कूल जाना था, ना होमवर्क करना था। मुझे लगा पापा हमको इस बार पहाड़ों पर बर्फबारी दिखाने लेकर जाएंगे, लेकिन जब पापा ने बताया कि हम वृंदावन के प्रेम मंदिर जा रहे हैं, तो मेरी एक्साइटमेंट थोड़ी कम हो गई। मुझे लगा मंदिर में तो बस पूजा-पाठ होता है, मैं वहां जाकर क्या करूंगा! मैंने जब इसके बारे में मम्मी से बोला तो उन्होनें यह कहकर टाल दिया, "एक बार चलो तो, फिर देखना!" हम सुबह तैयार होकर दिल्ली से अपनी कार से ही वृन्दावन के लिए निकले। पापा कार चला रहे थे, मम्मी और मेरी बहन पीछे वाली सीट पर थी, और मैं आगे पापा के बगल में बैठ गया। रास्ते में मैं खिड़की से बाहर देखता रहा और सोचता रहा कि पता नहीं ये ट्रिप कैसी होने वाली है। पापा रास्ते में बता रहे थे कि प्रेम मंदिर   जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज  ने बनवाया है और यह राधा-कृष्ण जी और सीता-राम जी का मंदिर है।

प्रेम मंदिर की पहली झलक(जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज)


 

जब हम वृन्दावन पहुंचे, तो माहौल कुछ अलग ही था। हर तरफ राधे-राधे के झंडे लगे थे, लोग भजन गा रहे थे और मंदिरों से आरती की आवाज आ रही थी। वहां पहुंचकर हम एक होटल में रुके जहां हमने दोपहर का खाना खाया और थोड़ी देर आराम किया।  

शाम को लगभग 5 बजे हम सब प्रेम मंदिर के दर्शन के लिए होटल से निकले। जैसे ही मैंने प्रेम मंदिर की पहली झलक देखी, मैं तो सरप्राइज रह गया। यह मंदिर तो मेरी कल्पना से काफी बड़ा था। बिल्कुल सफेद संगमरमर से बना मंदिर किसी महल जैसा लग रहा था! ढलते सूरज की रोशनी पड़ने से मंदिर और चमक रहा था। इतनी सफाई और सुंदरता मैंने और किसी मंदिर में नहीं देखी थी। तब मुझे लगा कि शायद ये ट्रिप उतना बोरिंग नहीं होने वाला!आगे पढ़े

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