प्रेम मंदिर की यात्रा – एक 12 साल के बच्चे की नजर से(जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज)

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  ठंडी की छुट्टियाँ शुरू होते ही मैं बहुत खुश था। अब पूरे दो हफ़्तों के लिए ना स्कूल जाना था, ना होमवर्क करना था। मुझे लगा पापा हमको इस बार पहाड़ों पर बर्फबारी दिखाने लेकर जाएंगे, लेकिन जब पापा ने बताया कि हम वृंदावन के प्रेम मंदिर जा रहे हैं, तो मेरी एक्साइटमेंट थोड़ी कम हो गई। मुझे लगा मंदिर में तो बस पूजा-पाठ होता है, मैं वहां जाकर क्या करूंगा! मैंने जब इसके बारे में मम्मी से बोला तो उन्होनें यह कहकर टाल दिया, "एक बार चलो तो, फिर देखना!" हम सुबह तैयार होकर दिल्ली से अपनी कार से ही वृन्दावन के लिए निकले। पापा कार चला रहे थे, मम्मी और मेरी बहन पीछे वाली सीट पर थी, और मैं आगे पापा के बगल में बैठ गया। रास्ते में मैं खिड़की से बाहर देखता रहा और सोचता रहा कि पता नहीं ये ट्रिप कैसी होने वाली है। पापा रास्ते में बता रहे थे कि प्रेम मंदिर   जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज  ने बनवाया है और यह राधा-कृष्ण जी और सीता-राम जी का मंदिर है।

2002 में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महराज ने जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षता अपनी बड़ी सुपुत्री सुश्री डॉ. विशखा त्रिपाठी जी को सौंप दी।

 साल 2002 में, एक ऐतिहासिक निर्णय के अंतर्गत, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपनी आध्यात्मिक संस्था जगद्गुरु कृपालु परिषद् की बागडोर अपनी सुपुत्री, सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी को सौंपी। इस निर्णायक क्षण ने न केवल संगठन के भविष्य को एक सशक्त दिशा दी, बल्कि यह भी दर्शाया कि गुरुदेव ने किस विश्वास और श्रद्धा के साथ उन्हें यह दायित्व सौंपा।

डॉ. त्रिपाठी, जिनकी शिक्षा और साधना दोनों ही उल्लेखनीय हैं, ने अपने नेतृत्व में परिषद् के कार्यों को और अधिक विस्तार व प्रभावशाली रूप प्रदान किया। उनकी दूरदर्शिता और सेवा भावना ने संगठन को वैश्विक स्तर पर नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं।

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