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प्रेम मंदिर की यात्रा – एक 12 साल के बच्चे की नजर से(जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज)

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  ठंडी की छुट्टियाँ शुरू होते ही मैं बहुत खुश था। अब पूरे दो हफ़्तों के लिए ना स्कूल जाना था, ना होमवर्क करना था। मुझे लगा पापा हमको इस बार पहाड़ों पर बर्फबारी दिखाने लेकर जाएंगे, लेकिन जब पापा ने बताया कि हम वृंदावन के प्रेम मंदिर जा रहे हैं, तो मेरी एक्साइटमेंट थोड़ी कम हो गई। मुझे लगा मंदिर में तो बस पूजा-पाठ होता है, मैं वहां जाकर क्या करूंगा! मैंने जब इसके बारे में मम्मी से बोला तो उन्होनें यह कहकर टाल दिया, "एक बार चलो तो, फिर देखना!" हम सुबह तैयार होकर दिल्ली से अपनी कार से ही वृन्दावन के लिए निकले। पापा कार चला रहे थे, मम्मी और मेरी बहन पीछे वाली सीट पर थी, और मैं आगे पापा के बगल में बैठ गया। रास्ते में मैं खिड़की से बाहर देखता रहा और सोचता रहा कि पता नहीं ये ट्रिप कैसी होने वाली है। पापा रास्ते में बता रहे थे कि प्रेम मंदिर   जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज  ने बनवाया है और यह राधा-कृष्ण जी और सीता-राम जी का मंदिर है।

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के जीवन में अनेक ऐसे पहलू हैं जो भक्तों के बीच तो प्रचलित हैं, लेकिन आम तौर पर कम ही सुने या लिखे गए हैं। आइए, कुछ ऐसी "अनकही बातें" जानें जो उनके व्यक्तित्व की गहराई और दिव्यता को और उजागर करती हैं:

🌺 जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की कुछ अनकही बातें 1. मौन में भी ज्ञान की गंगा बहती थी: महाराज जी कई बार घंटों मौन रहते थे, लेकिन उनका मौन भी मानो बोलता था। उनके चेहरे की मुस्कान, आंखों की करुणा, और सन्नाटा भी शिष्यों को आत्मज्ञान का अनुभव करा देता था। 2. शास्त्रों का अद्भुत समर्पण: कहा जाता है कि मात्र 16 वर्ष की आयु में ही उन्होंने वेद, उपनिषद, पुराण और दर्शन शास्त्रों का गंभीर अध्ययन कर लिया था। वे किसी भी शास्त्रीय प्रश्न का उत्तर तुरंत दे सकते थे — वो भी शास्त्रों के शब्दों में ही। 3. हर आत्मा को राधा रानी का अंश मानते थे: उनकी दृष्टि में कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा नहीं था। वे हर व्यक्ति को राधा रानी की कृपा का पात्र मानते थे। इसीलिए उनके दर्शन में कोई भेदभाव नहीं था — जाति, धर्म, लिंग सब उनके लिए अप्रासंगिक थे। 4. छोटी-छोटी बातों में भी गहन उपदेश: एक बार किसी भक्त ने उनसे पूछा, "महाराज जी, सेवा करते समय थकान क्यों होती है?" महाराज जी ने मुस्कराकर उत्तर दिया, "सेवा जब ‘कर्तव्य’ बन जाती है तो थकान देती है, लेकिन जब ‘प्रेम’ बन जाती है तो अमृत देती है।...

2002 में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महराज ने जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षता अपनी बड़ी सुपुत्री सुश्री डॉ. विशखा त्रिपाठी जी को सौंप दी।

 साल 2002 में, एक ऐतिहासिक निर्णय के अंतर्गत, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपनी आध्यात्मिक संस्था जगद्गुरु कृपालु परिषद् की बागडोर अपनी सुपुत्री, सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी को सौंपी। इस निर्णायक क्षण ने न केवल संगठन के भविष्य को एक सशक्त दिशा दी, बल्कि यह भी दर्शाया कि गुरुदेव ने किस विश्वास और श्रद्धा के साथ उन्हें यह दायित्व सौंपा। डॉ. त्रिपाठी, जिनकी शिक्षा और साधना दोनों ही उल्लेखनीय हैं, ने अपने नेतृत्व में परिषद् के कार्यों को और अधिक विस्तार व प्रभावशाली रूप प्रदान किया। उनकी दूरदर्शिता और सेवा भावना ने संगठन को वैश्विक स्तर पर नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं।

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज शांति की राह: ध्यान की सबसे सरल और असरदार विधि

 आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में मानसिक शांति एक अनमोल खज़ाना बन चुकी है। ध्यान (मेडिटेशन) ही वह साधन है जो हमें इस भागदौड़ से निकालकर अंदरूनी शांति की ओर ले जाता है। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज से जानें एक ऐसी ध्यान विधि के बारे में जो न केवल आसान है, बल्कि बेहद प्रभावशाली भी है। साँस पर ध्यान केंद्रित करना (Breath Awareness) यह ध्यान की सबसे पुरानी और सरल तकनीकों में से एक है। इसमें किसी मंत्र, विशेष मुद्रा या कठिन प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती। केवल अपनी साँसों पर ध्यान देना होता है। ध्यान करने की विधि: सबसे पहले एक शांत और आरामदायक स्थान चुनें। सीधे बैठ जाएँ और अपनी आँखें बंद करें। अब अपनी साँसों के आने और जाने पर ध्यान दें। यदि ध्यान भटक जाए, तो धीरे-धीरे उसे फिर से साँसों की ओर ले आएँ। शुरुआत में 5 से 10 मिनट तक करें, फिर धीरे-धीरे समय बढ़ा सकते हैं। यह विधि क्यों असरदार है? यह मन को तुरंत शांत करती है। तनाव, घबराहट और चिंता को कम करती है। मन की एकाग्रता बढ़ाती है। अच्छी नींद लाने में मदद करती है। नियमित अभ्यास के लाभ: अगर आप रोज़ाना स...

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज: भक्ति, ज्ञान और समाज सेवा के अद्वितीय मार्गदर्शक"

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  जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का जीवन एक अविस्मरणीय यात्रा है, जिसमें भक्ति , ज्ञान और समाज सेवा का अद्भुत संगम है। उन्होंने अपनी शिक्षाओं और कार्यों से न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया को आध्यात्मिक दिशा दिखाई। वे न केवल महान संत थे, बल्कि एक समाज सुधारक और मानवता के सच्चे सेवक भी थे। 🌸 श्री कृपालु जी का जन्म और जीवन श्री कृपालु जी महाराज का जन्म 5 अक्टूबर 1922 को उत्तर प्रदेश के मंगढ़ गांव में हुआ था। उनका बचपन साधारण था, लेकिन उनकी आध्यात्मिक प्रवृत्तियाँ और धार्मिक रुचि जल्द ही स्पष्ट हो गई। वे बचपन से ही वेद, उपनिषद और भगवद गीता जैसे धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करने में रुचि रखते थे। ✨ भक्ति के प्रति समर्पण श्री कृपालु जी महाराज का जीवन भक्ति का प्रतीक था। उनका कहना था कि ईश्वर के प्रेम में डूबकर ही जीवन का वास्तविक आनंद मिलता है। उन्होंने "रूपध्यान" और "भक्ति ध्यान" की विधि का प्रचार किया, जिसके माध्यम से भक्त भगवान के रूप को मन में संजोकर अपने हृदय में प्रेम और श्रद्धा की गहराई तक पहुँच सकते हैं। उनकी शिक्षाओं में यह स्पष्ट था कि सच्ची भक्ति तब ह...

गुरुकृपा का उत्तरदायित्व: डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी का नेतृत्व

  जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का जीवन अनंत करुणा, ज्ञान और भक्ति का अद्वितीय संगम था। उन्होंने न केवल भक्तों को राधा-कृष्ण भक्ति का अमृत पिलाया, बल्कि एक ऐसी संस्था की भी स्थापना की जो इस दिव्य संदेश को समाज के कोने-कोने तक पहुँचा सके— जगद्गुरु कृपालु परिषत् । इस संस्था का उद्देश्य केवल आध्यात्मिक जागरूकता फैलाना नहीं था, बल्कि समाज के वंचित वर्ग के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा के माध्यम से भी समर्पण करना था। सन 2002 में, इस संस्था के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया, जब श्री महाराज जी ने इसकी अध्यक्षता अपनी ज्येष्ठ सुपुत्री, सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी को सौंप दी। यह एक साधारण नियुक्ति नहीं थी, बल्कि एक पावन उत्तरदायित्व था—एक आध्यात्मिक विरासत को सँभालने और उसे युगों तक आगे बढ़ाने का। डॉ. त्रिपाठी जी पहले से ही अपने पिता के कार्यों में सक्रिय रूप से सहभागी थीं। उन्होंने न केवल आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की थी, बल्कि प्रबंधन, योजना और सेवा-भाव के क्षेत्र में भी दक्षता हासिल की थी। उनके नेतृत्व में जगद्गुरु कृपालु परिषत् ने अद्भुत प्रगति की। बरसाना, वृन्दावन, प्रयागराज ...